Thursday 5 February 2015

Purva Janmo ke Phal


दण्डित व्यक्ति को यह जानकारी होनी चाहिए कि उसने पूर्वजन्म में किस योनि में क्या पाप व दुष्कर्म किया है जिसके कारण उसे यह सजा मिली है – प्रथम पूर्वजन्म को जानें फिर अर्जित कर्मफलको....

 

प्रश्न – हम कैसे मान ले कि हम जो सुख-दुःख भोग रहे है वह पूर्व जन्मो का फल है ? इसका स्पष्टिकरण श्री रामकृष्ण परमहंस के निम्नांकित तीन प्रश्नोत्तर से सुस्पष्ट होगा ।

 

(1) प्रश्न - आप किस बात को न्याय संगत मानते हैं पहले कर्म किया जाय और फल बाद में दिया जाय, या पहले फल दिया जाए और कर्म बाद में किया जाय ?

          उत्तर - पहले कर्म किया जाय और फल बाद में दिया जाय, यही न्याय संगत है |

 

(2) प्रश्न - अच्छा ! अब यह बताइयें कि आपको पैदा होते ही जो यह शरीर मिला है, वह बिलकुल मुफ्त में मिला है, या किन्हीं कर्मों का फल है ?

          उत्तर - मुफ्त में नहीं मिला है, बल्कि किन्हीं कर्मों का फल है |

 

(3) प्रश्न - ठीक है ! अब मेरा अंतिम व तीसरा प्रश्न यह है कि - प्रथम आपने यह स्वीकार किया कि "पहले कर्म किया जाय और फल बाद में दिया जाय यही न्याय संगत है", और फिर यह कहा कि "यह शरीर मुफ्त में नहीं मिला, किन्हीं कर्मों का फल है" तो कृपया अब यह बताइयें कि जिन कर्मों का फल यह शरीर है, वे कर्म आपने कब किये ?

          उत्तर - पूर्व जन्म में ! तो पुनर्जन्म की सिद्धि हो ही गई |

 

पूर्व जन्म के कर्मो के कारण ... जैसे अगर पुनर्जन्म को आप नहीं मानते .. तब बोलिए कि फिर कोई जन्म से अंधा, बहरा, लंगड़ा और जड़बुद्धि क्यों ? कर्म तो अभीतक किए नहीं । तो फल किसका - पूर्व जन्मार्जित कर्मोका ।

 

दूसरा विचारणीय तथ्य है कि यदि इस जन्म की अपंगता पिछली योनि के कर्मो का फल है तो न्याय की मांग है कि दण्डित व्यक्ति को यह जानकारी होनी चाहिए कि उसने पूर्वजन्म में किस योनि में क्या पाप व दुष्कर्म किया है जिसके कारण उसे यह सजा मिली है ताकि सुधार की सम्भावना बनी रहे। अगर अपंग व्यक्ति को पूर्व योनि में किए दुष्कर्म और पापकर्म का पता नहीं है और सत्य भी यही है कि उसे कुछ पता नहीं है तो क्या आवागमनीय पुनर्जन्म की धारणा पूर्णतया भ्रामक और कतई मिथ्या नहीं हो जाती ?

 

जी नहीं ! आपका ये मांगना कि आपको अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो अनुचित है !

 

जरा सोचिये, कि यूँ ही जब किसी को जन्म लेने पर किसी से बदला नहीं लेना होता,  लेकिन फिर भी संसार में ऐसी भयंकर मार-काट मची है,  केवल इस जन्म की स्मृतियों से ही मनुष्य युद्ध पर युद्ध लड़ रहा है,  द्वेष फैला है,  यदि परमात्मा हमे ये भी बता दे कि पिछले और उस से पिछले और उस से पिछले जन्म में किसने हमारे साथ और हमने किसके साथ क्या किया था तो संसार कि क्या हालत हो ? जन्मान्तरों के मित्र-शत्रुओं के रागद्वेषमें ही जीवन पूर्ण हो जाएगा । क्या रहेगा इस जन्म का अर्थ और फलतः नये वैर और स्नेह उत्पन्न होते ही जाएंगे । अनन्त कालीन ये शृंखला बनी रहेगी । परमात्मा परम कृपालु हैं जो विस्मृति कराता हैं । पूर्व की छोडो, इस जन्मकी भी अच्छी-बुरी बाते हम कालान्तरमें भूल जाते हैं अन्यथा पुत्र एवं पत्नीके वियोगमें क्या हम जीवत हर पाएंगे ? पत्नी के अकाल  मृत्यु के उपरान्त पुनर्विवाह कर पाएंगे ?

 

जैसे विदित ही है की संसार में भी यदि किसी के साथ बचपन में कोई अप्रिय घटना हो जाये तो व्यक्ति उसे जीवन भर भुला नहीं पाता, और उसी क्रोध,  पश्चाताप, ग्लानी और बदले की भावना से अपना संपूर्ण जीवन नष्ट कर लेता है | विद्वानों की सदा से राय रहती है की यदि कुछ अप्रिय हो जाये अथवा कोई गलती हो जाये तो अबकी उसे भूल कर नए सिरे से आरम्भ करो और ग्लानी को त्यागो |

 

परमात्मा हमको किसने हमारे प्रति बुरा किया और हमने किसके प्रति बुरा किया वो सब हमारी स्मृति  मिटा देता है,  मानो कह रहा हो लो पिछला सब भूल कर नयी शुरुआत करो और जीवन धन्य बनाओ |”

 

और फिर परमात्मा का न्याय देखकर पूर्ण रूप से नहीं परन्तु कुछ कुछ अंदेशा तो हो ही जाता है की पूर्व जन्म में क्या गलत काम किया था | जैसे यदि जड़बुद्धि है तो अर्थात बुद्धि का अनुचित उपयोग किया, यदि लंगड़ा है अर्थात पैरों का उपयोग गलत किया, यदि हाथो में अपंगता है तो अर्थात हाथो से कुछ अनिष्ट किये, यदि नेत्रो की अपंगता है अर्थात नेत्रो से पाप कर्म किये,  वाणी में अपंगता है अर्थात वाणी से कटु शब्द बोले, कमजोर है तो बल का दुरूपयोग किया इत्यादि इत्यादि | इसीसे सुधर की सम्भावना बन जानी चाहिए |

 

इसीलिए संसार में सब नयी शुरुआत कर सके और पूर्व जन्मकृत पाप कर्मो की ग्लानी से ऊपर उठ सकें इसके लिए हमे पूर्व जन्म कृत कर्म भूल जायें ये ही उचित है | इसके लिए तो हमे परमात्मा का धन्यवादी होना चाहिए  और आप आपत्ति करते है ?

 

दूसरा तर्क यह हैं कि कर्म, फलको उत्पन्न करता ही हैं । कर्मसे फलका निर्माण न हो यह संभव ही नहीं । वर्तमान जीवनमें हमे हमारे कर्म सर्जित दण्ड-शिक्षा के कारण ज्ञात हैं, क्यों कि कर्म, अवस्था-काल, पदार्थ, कर्ता आदिका हमे ज्ञान हैं, जिसके प्रमाण हमारे प्रत्यक्ष हैं, यथा हम जान सकते है कि मेरे फलां-फलां कर्मका यह फल-दण्ड हैं । किन्तु कर्म के काल, कारणादि का हमे ज्ञान नहीं होता तो भी फल तो अवश्य मिलता किन्तु कारण नहीं पता चलता । किसी नवजात शिशुको कोई उठा जाता हैं, बच्चा का हाथ किसी विषैले पदार्थ पर लगकर स्वयंकी आंख पर लग जाता है और वह अंध हो जाता है । अंध बालकको न रखनेकी ईच्छासे, उसे किसी अनाथालय के द्वार पर अज्ञातरूप से छोड दिया जाता  हैं । अनाथालयवाले अंध बालक को आश्रय देते हैं । बालक अनाथालयमें पलता हैं – बडा होता हैं । क्या यह बालक कभी भी नेत्रांध होनेका कारण जान पाएगा ? नहीं । क्योंकि कर्म उसकी अज्ञात अवस्था का था, उसके कर्मका न तो  स्वयं ज्ञाता  है न कोई दृष्टा, यद्यपि कर्मका फल तो भोग ही रहा है, भले ही वह अज्ञातावस्थाका क्यों न हो ।

 

हम कभी-कभी अपने बच्चोंकी शरारतो की शिक्षा करते हैं, किन्तु बालक की तब अवस्था या परिपक्वता नहीं होती कि वह शिक्षाका उचित कारण जान सकें । हां कालान्तरमें परिपक्वता आने पर वह जान सकता हैं – वैसे ही जन्मान्तरो के कर्मको जाननेके लिए दिव्य ज्ञान की आपश्यकता रहती हैं । वह कर्म इस शरीरके हाथ-पैर-नेत्रादि जैसे इन्द्रियों से नहीं किए गए हैं, यथा अतीन्द्रिय कर्म हो गए और अतीन्द्रिय कर्मो को जानने के लिए अतीन्द्रिय ज्ञान होना जरूरी हैं ।

 

हमे पूर्वकृत कर्मोफलोका बन्धन तो है, किन्तु जन्मान्तरो के कर्मो की स्मृति नहीं हैं,  यथा दुःख का क्या कारण हैं वह जानना सर्वथा असंभव हो जाता हैं । हां, योग के अभ्यास या इष्टबलकी वृद्धि के साथ इसका स्मरण भी संभव हो सकता हैं, किन्तु यह सामान्य बात नहीं हैं ।